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एक महिला, जिनकों उत्तराखंड में भविष्‍य की पीढ़ियां भूला नहीं सकती, वह हैं गौरा देवी। उन्‍होंने इस क्षेत्र की महिलाओं को, वृक्षों की रक्षा करने की शिक्षा दी थी।
गौरा देवी ने वनों को देवताओं के रूप में मानती थीं, क्‍योंकि गॉंव के लोग अपनी दैनिक आवश्‍यकताओं के लिए वनों पर निर्भर थे। वह हरियाली का सम्‍मान करती थी, क्‍योंकि यह न केवल अजीविका का एक स्रोत थी, बल्‍कि सभी वनस्‍पतियों, जीवों एवं मानव प्रजातियों के लिए एक महत्‍वपूर्ण जीवन रक्षक भी थी। एक साक्षात्‍कार में गौरा देवी ने कहा था, "भाइयों, यह जंगल हमारी मातृभूमि की भांति है। हम उनसे जड़ी बूटी ईंधन, फल और सब्‍जीयॉं प्राप्‍त करते हैं। वनों को काटने के परिणामस्‍वरूप, बाढ़ में वृद्धि होगी।"
उन्‍होंने लोगों को वनों के महत्‍व के बारें में बताया। वे वहॉं से जलाने के लिए लकड़ी और निर्माण के लिए लकड़ी निरंतर प्राप्‍त करते थे। वे जंगल में अपने पशुओं को चराने के लिए ले जाते थे और चारा भी एकत्रीत करते थे। उनके पहाड़ी क्षेत्र में, वृक्ष, भूस्‍खलन को भी रोकते थे।
जब सरकार ने उनके क्षेत्र में वृक्षों के कटाव को अधिकृत किया और ठेकेदारों को वृक्षों के काटने के लिए भेजा, तो गौरा ने कार्रवाई के खिलाफ विद्रोह किया। उत्तराखंड के रैंणी गॉंव में, गौरा और 27 अन्‍य महिलायों वृक्ष के पास एक दूसरे का हाथ पकड़कर, एक पंक्‍ति में खड़ी हो गयी थी। उनमें से हर एक, पहाड़ी देवी की तरह दिखती थी, जिन्‍होंने भयंकररूप धारण कर लिया था। वे वृक्षों को कुल्‍हाड़ी द्वारा काटने से बचाने के लिए उनसे लिपट गयी थी। पहली सहसिक चिपको कार्रवाई के बाद, पूरे भारत में जंगलों के कटाव का विरोध फैल गया था और इसे चिपको आंदोलन के रूप में जाना जाने लगा। 26 मार्च 1974 को, चिपको आंदोलन में ऐतिहासिक दिन के रूप में जाना जाता है।
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Top 10 Speed

# Total Word Typed Word Correct Word Wrong Word Time Used Speed(WPM)
1 301 261 232 29 10 23.2
2 301 72 66 1 3.57 20.17
3 301 134 115 19 10 11.5
4 301 40 33 3 1.67 5.99
5 301 0 -1 1 0.43 -23.26
6 301 79 26 51 3.27 -122.78
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