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प्रसिद्ध मराठी नाटककार विजय तेंदुलकर का नाम न केवल मराठी रंगमंच के संदर्भ में बल्कि भारतीय रंगमंच के लिए भी बहुत बड़ा नाम है। पेशे से पत्रकार तेंदुलकर ने रचनात्मक लेखक के रूप में विभिन्न विधाओं में हाथ आजमाये हैं। इनमें लेख, लघु कथाऍं, एकांकी, नाटक, पटकथाऍं और संवाद, साहित्यिक आलोचना और अनुवाद शामिल हैं। यद्यपि वे सभी क्षेत्रों में सफल रहे हैं। लेकिन नाट्य-लेखन ही उनका गढ़ रहा है। वे कलम के एक उत्कृष्ट सिपाही हैं, जिन्होंने संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, कमला देवी चट्टोपाध्याय पुरस्कार और पद्म भूषण जीते। तेंदुलकर को प्रेरणा अपने आसपास के समाज से प्राप्त होती है। वे मानव को प्रेरणा अपने आसपास के समाज से प्राप्त होती है। वे मानव संबंधों, विशेष रूप से निचले और मध्यम वर्ग के समाज के एक गहन पर्यवेक्षक हैं। उन्होंने अट्ठाईस लम्बे नाटक लिखे हैं और लगभग सभी के प्लॉट में महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण है। चाहे वह सखाराम बाइंडर, शांतता कोर्ट चालू आहे, कमला, गिधाडे, बेबी, घासीराम कोतवाल, मित्राची गोष्ट, कन्यादान या एक हट्टी मुलगी हो, हर नाटक में उनके द्वारा गढ़े गए महिला पात्रों के प्रति सहानुभूति की एक दबी हुई लहर महसूस की जा सकती है। शांतता कोर्ट चालू आहे में तेंदुलकर ने भले ही मानव संबंधों के उलझे जाल प्रस्तुत किये हैं, लेकिन अंत में नायिका ही पुरूष चरित्रों की तुलना में अधिक मजबूत सिद्ध होती है। शांतता कोर्ट चालू आहे और सखाराम बाइंडर में तेंदुलकर ने प्रेम, सेक्स, विवाह और समाज में प्रचलित नैतिक मूल्यों के बारे में औचित्य के अपने पैमानों पर ही हर किसी को चलने के लिए कहता है। मध्यवर्गीय नैतिकताओं के खोखलेपन को उजागर करने के लिए लेखक विडंबना, व्यंग्य, करूणा और उपहासात्मक तत्वों का जमकर उपयोग करता है। इन नैतिकताओं में थोड़ी- बहुत भिन्नता हो सकती है, लेकिन हर समय और सभी आयुओं में वे एक समान ही रहती हैं।