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हर वर्ष 21 मार्च को पारसियों द्वारा पारसी नव वर्ष, नवरोज मनाया जाता है। सभी पारसी उत्सव में सम्मिलित होते हैं और आनंद मनाते हैं। हम नहीं जानते कि इस उत्सव की शुरूआत कैसे हुई लेकिन इतिहास बताता है कि यह पहली बार ईसा पूर्व 6वीं शताब्दी मं मनाया गया जब फारसी साम्राज्य पर साडरस और डैरियस का शासन था। हालांकि महान फारसी कवि फिरदौसी अपने "शाहनामा" में लिखते हैं कि इस उत्सव की शुरूआत राजा जमशेद द्वारा वसंत के आगमन का जश्न मनाने के लिए की गई थी। यही कारण है कि पारसी इसे जमशेदी नवरोज कहते हैं।
इस उत्सव की तैयारी बहुत दिन पहले से ही शुरू हो जाती है। पारसी अपने घरों को साफ करते हैं और उनहें गुलाब और जास्मिन के फूलों से सजाते हैं। रंगीन पाउडर से ज्यामितीय आकार के या मछलियों, चिड़ियों और सितारों के आकार के खूबसूरत डिजाइन बनाए जाते हैं।
भोजन पारसी उत्सवों का महत्वपूर्ण भाग होता है। पारसी भोजन पश्चिम एशियाई और मांसाहारी भारतीय पकवानों का स्वादिष्ट मिश्रण होता है। नवरोज की सुबह पूरा परिवार निकटतम अग्नि मंदिर में जाता है जहां पुजारी जश्न- ईश्वर के प्रति आभार व्यक्त करते हैं। प्रत्येक सदस्य पवित्र अग्नि में चंदन की लकड़ी की आहुति देता है। लोग अपने सबसे अच्छे कपड़े पहनते हैं। बच्चे बहुत उत्साहित रहते हैं। प्रार्थना करते समय बच्चे सोने और चांदी की जरी वाली छोटी गोल टोपी और आदमी काले मखमल की टोपी पहनते हैं तथा महिलाएं साड़ियों से अपने सिर को ढककर रखती हैं। प्रार्थना के बाद पारसी एक दूसरे को गले लगाते हैं और साल मुबारक कहते हैं।
लोगों के यहां आने-जाने और दोस्तों तथा रिश्तेदारों के साथ उपहारों के आदान प्रदान में दिन व्यतीत किया जाता है। पारसी घरों में मेहमानों को तिलक लगाने के लिए चांदी की थाल में गुलाब की पंखुड़ियां, नारियल व कुमकुम और अक्षत रखा जाता है। प्रत्येक मेहमान पर मुख्य रूप से गुलाब जल का छिड़काव किया जाता है।
दोपहर के भोजन के समय खासतौर से तैयार किये गए भोजन का आनंद लेने के लिए पूरा परिवार इकट्ठा होता है। उन कम भाग्यशाली लोगों को भोजन भी दिया जाता है जो उत्सव को ठीक तरह से नहीं मना पाते। गरीबों को भोजन और कपड़े देने के कार्य में बच्चे भी हिस्सा लेते हैं जिससे वे गरीबों की मदद करने की पारिवारिक परंपरा शुरू से ही सीखते हैं।