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सामाजिक होने का एक महत्वपूर्ण पहलू है 'संक्षिप्त वार्ता' - ऐसी चीजों के बारे में अनौपचारिक बातचीत जो महत्वपूर्ण नहीं है, लेकिन दूसरे व्यक्ति के प्रति आपकी सद्भावना को स्थापित करती है, तथा उसे बेहतर ढंग से जानने में आपकी मदद करती हैं। संक्षिप्त वार्ता हर समय आकस्मिक परिचितों, एकसाथ यात्रा कर रहे लोगों तथा अपने काम आदि के दौरान मिलने वाले लोगों के साथ होती है।
सामाजिक होने और अपने दोस्तों के साथ बातचीत करने में अंतर यह है कि आप अपने दोस्तों को लंबे समय से जानते हैं, और उनके साथ खुलकर बात कर सकते हैं, जबकि संक्षिप्त बातचीत उन लोगों के साथ होती है जिन्हें हो सकता है आप जानते न हों। अत: सामाजिक होते समय आपको चर्चा किए जाने वाले विषयों को लेकर सावधान रहना चाहिए। ऐसे विषयों से बचें जो नाराज कर सकते हैं और उम्र, वेतन या वैवाहिक स्थिति जैसे व्यक्तिगत प्रश्न न पूछें।
सामान्यत: बातचीत मौसम, होटल्स, भोजन, मनोरंजन, दिन की खबर आदि के बारे में होती है। यदा-कदा बातचीत वाले संपर्कों से विषय आ जाते हैं। प्रश्नों के उत्तर और उन पर होने वाले कमेंट्स अगले विषय के लिए राह बना सकते हैं। जब कोई व्यक्ति आपसे संक्षिप्त वार्ता करता है तो केवल हां या ना में उत्तर न दें। अपनी राय दें या दूसरे व्यक्ति की राय या अनुभव जानें।
संक्षिप्त वार्ता का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू है समय, कोई व्यक्ति कितना समय बात कर सकता है। सीधा सा जवाब है ज्यादा लंबे समय तक नहीं, विशेष तौर पर औपचारिक या व्यापार की स्थिति में। व्यक्ति को मेहमान के संकेत की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए कि यह काम का समय है या घड़ी देखते हुए या फाइल या ब्रीफकेस की क्लिप खोलते हुए चलने का समय है।
संसार में संपूर्ण अज्ञान नाम की वस्तु नहीं होती। अज्ञान अक्सर परिस्थितियों के अनुसार बदलता रहता है। इसकी कोई एक सर्वमान्य जिंदगी नहीं हो सकती पर इतना तो तय है कि जिस समय यह व्यक्ति के नाक पर हावी होता है, उस समय उसे यही लगता है कि वह कल का सबसे बड़ा ज्ञानी है और उसके पास हर एक वस्तु की मान्यता का तर्क है।